Poos Ki Raat | मुंशी प्रेमचंद की कहानी
यह मुंशी प्रेमचंद जी की प्रसिद्ध “poos ki raat” कहानी है।बहुत समय पहले की बात है। उत्तर भारत के एक गाँव में हल्कू नाम का एक गरीब किसान रहता था। वह अपनी पत्नी, मुन्नी के साथ रहता था। हल्कू किसी जमींदार की ज़मीन पर खेती करता था। दिन-रात मेहनत करने के बावजूद भी आमदनी कुछ ख़ास नहीं थी। घर जैसे-तैसे ही चल पता था। मुन्नी ने उसे खेती छोड़कर कहीं मजदूरी करने का सुझाव दिआ।
हल्कू के लगान के तीर पर दूसरों की खेती थी। खेतों के मालिक का बकाया था। एक दिन, हल्कू ने अपनी पत्नी से ३ रुपए माँगे। मगर मुन्नी ने देने से इनकार किया। ये ३ रुपिए कंबल खरीदने के लिये जमा करके रखे थे क्युकिं जल्द ही ठंड आने वाली थी। जमींदार के तगादे और गालियों से डरकर मुन्नी ने हल्कू को ३ रुपिए निकलकर दे दिए। जमिंदार रुपिए लेकर चला गया।
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अब पूस मास आ गया था। अंधेरी रात थी और बहुत ही ज़्यादा सर्दी थी। हल्कू अपने खेत के एक किनारे ऊख के पत्तों की छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर लेटा हुआ था। वह एक फट्टी -पुरानी चादर ओढ़े ठंड में ठिठुर रहा था। खाट के नीचे उसका पालतू कुत्ता जबरा बैठा कुँ-कूँ कर रहा था। उस बेचारे को भी बहुत ठंड लग रही थी। हल्कू को जबरे की हालत पर तरस आ रहा था।
उसने जबरा से कहा, “तू मेरे साथ इतनी ठंड में क्यों आया? अब ठंड में ठिठुर, मैं क्या ही करुँ?” हल्कू बहुत देर तक जबरे से बातें करता रहा। जब ठंड के कारण उसे नींद नहीं आई, तब उसने जबरे को अपनी चादर में घुसा लिआ। जबरे की शरीर की गर्मी से हल्कू को सुख मिला। कुछ समय यूँ ही बीत गया। अचानक, एक आहट पाकर जबरा उठा और तेज़-तेज़ भौंकने लगा। उसे अपने कर्तव्य का आभास था।
जैसे-जैसे रात भड़ रही थी, उतनी ही ठंड बढ़ती जा रही थी। शीत हवा चल रही थी। तभी हल्कू को एक ख्याल आया। हल्कू के खेत के पास ही आमों का भी एक खेत था। आम के खेत में कई पत्ते गिरे पढ़े थे। हल्कू ने सारे गिरे हुए पत्तो का ढेर बनाया और पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड़ के लाया। उसे सुलगाया और अपने खेत में आकर वहाँ के पत्तियों को भी सुलगाया। हल्कू और जबरा, दोनों अलाव के आगे बैठ गए। ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह गर्व महसूस कर रहा था। वह वही चादर ओढकर सो गया।
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उसी समय नज़दीक में आहट पाकर जबरा भौंकने लगा। नील गायों का एक बड़ा सा झुण्ड खेत में आया था। उनके कूदने-दौड़ने की आवजें सुनाई दे रही थी । कुछ समय बाद ऐसा सुनाई पड़ा मानो वे खेत में जैसे चर रही हो। जबरा तो भौंकता रहा। फिर भी हल्कू को उठने का मन नहीं हुआ। नील गायें खेत का सफाया किये जा रही थीं। मगर हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था और धीरे-धीरे चादर ओढकर सो गया। उदर नील गायों ने रात भर चरकर खेती की सारी फसल को बरबाद कर दी।
सवेरे जब उसकी नींद खुली, उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी। खेत सफाचट हो गया था। मुन्नी जैसे ही खेत में पहुंची, दंग रह गयी। वह बोली, “तुम यहाँ आकर सो गए और उधर सारा खेत सत्यनाश हो गया।” दोनों खेत के पास आ गये। मुन्नी ने उदास होकर कहा, “अब मजदूरी करके पेट पालना पड़ेगा। हल्कू को इस बात से कुछ ख़ास फरक नहीं पड़ा। हल्कू ने कहा, “कम से कम रात की ठण्ड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा।” उसने यह बात बड़ी प्रसन्नता से कही, “ऐसी खेती करने से तो मजदूरी करना ही आरामदायक है। मजदूरी करने में कम से कम इतना झंझट तो नहीं हैं।”